ना मिलने की बेचैनी होती,
ना रातों को जागना होता,
अजनबी राहों में यूँ ही..
ना बेसुध भटकना होता..
काश की तुम ना होती...
ना दिल में बेकरारी होती...
ना जहां हमारा दुश्मन होता..
ना बेहिसाब अनवरत..
दौड़ता ये बावरा मन होता..
काश की तुम ना होती..
ना आँखों में आंसू होते..
ना तुमसे मिल पाने का गम होता..
ना किसी से बैर होती..
ना कोई हमारा हमदम होता..
काश की तुम ना होती..
ना चेहरे पे मुस्कान होती..
ना सैकड़ों की भीड़ में तुम्हारे दिखने का भ्र्म होता..
ना सुबह सुरीली होती,
यूँ ही गुजरता ये शाम होता..
काश की तुम ना होती..
हम तुम अपरिचित होते..
तुम कहीं और होती और मैं कहीं और होता..
फिर तुम भी तन्हा होती..
और मैं भी तन्हा होता..
प्रियजीत प्रताप जी का कविताएं और कहानियां आपको कैसा लगता है, हमें जरूर बताएं और कॉमेंट्स जरूर करें ,
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ना रातों को जागना होता,
अजनबी राहों में यूँ ही..
ना बेसुध भटकना होता..
काश की तुम ना होती...
ना दिल में बेकरारी होती...
ना जहां हमारा दुश्मन होता..
ना बेहिसाब अनवरत..
दौड़ता ये बावरा मन होता..
काश की तुम ना होती..
ना आँखों में आंसू होते..
ना तुमसे मिल पाने का गम होता..
ना किसी से बैर होती..
ना कोई हमारा हमदम होता..
काश की तुम ना होती..
ना चेहरे पे मुस्कान होती..
ना सैकड़ों की भीड़ में तुम्हारे दिखने का भ्र्म होता..
ना सुबह सुरीली होती,
यूँ ही गुजरता ये शाम होता..
काश की तुम ना होती..
हम तुम अपरिचित होते..
तुम कहीं और होती और मैं कहीं और होता..
फिर तुम भी तन्हा होती..
और मैं भी तन्हा होता..
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