Wo Bachha Me Hi Hun - Lalita Press

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कहानी अधूरी सी

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18 May 2018

Wo Bachha Me Hi Hun


मैने दरवाजे पे दस्तक दी, तभी अंदर से आवाज आया कौन...?
एक 30-32 साल का हमउम्र नौजवान दरवाजा खोलते ही पुछा  !
मैने झिझक्ते हुए कहा जी.... जी मैं प्रकाश  !
कौन प्रकाश...! बताइए क्या काम है....?
जी मैं ख्वाब शहर से आया हूँ!  शिखा मैडम यहीं रहती हैं  ?
जी यहीं रहती है, मैं उसका पति राजेश  !
आपको शिखा से क्या काम हैं..?
क्या हमलोग अंदर बैठ के बात कर सकते हैं  !मैने कहा
जी जरूर, आइये  !
बात ये है कि मैं और शिखा अपनी पढ़ाई एक ही स्कूल से शुरू की थी! जब का ही जान पहचान है!
पता चला था कि शादी के बाद इसी शहर में रहती है, तो सोचे इधर आये हैं तो क्यों न मिलते चले  !
अच्छा.....! अच्छा किए मिलने आ गए, घर से इतना दुर बड़े शहरों में कौन किससे मिलने आता है  !
हम तो इस वक़्त नहीं रूक सकते, आफिस के लिए लेट हो रहें हैं, सो शाम में आते हैं फिर बातें होगी  !
शिखा..... शिखा देखो तुम्हारे ख्वाब शहर से तुम्हें कोई मिलने आया है  !
मैं आफिस के लिए निकल रहा हूँ  !
बाय...!
मेरे शहर से कोई मिलने आया है...! कौन...?
आप...?
राजेश... राजेश....
जी वो तो चले गए  !
आप.....?
जी मैं प्रकाश! ख्वाब शहर का प्रकाश  !
पर मै तो आपको जानती नहीं...
ख्वाब शहर विद्या निकेतन स्कूल, वही से आप पांचवी तक की पढ़ाई किए हैं ना....!
हाँ पांचवी तक तो वही से पढ़ी हूं ,क्योंकि उससे आगे कि पढ़ाई वहा होती ही नहीं थी !और वो मुस्कुरा दी!
पर आप ये सब....! और एसे आश्चर्य से क्यों देख रहे हैं ?
कुछ नहीं, आप उस समय भी एसे ही हंसती थी!
क्या.... मैं आपको अभी तक पहचानी नहीं  !
विद्या निकेतन स्कूल का हेडमास्टर विद्यासागर सर याद है
हाँ......! विद्यासागर सर बहुत अच्छे सर थे!
सब बच्चों के प्यारे थे वो! ये बोलते बोलते शिखा थोड़ी शान्त सी  हो गई  !
आपको एक बार स्कूल में एक पाँचवी क्लाश के लड़के से  झगड़ा हो गया था, शायद आप चौथी क्लाश में थी!
कहाँ याद रहता है उस समय कि इतनी बातें...! तब बहुत छोटे थे, बस कुछ कुछ याद हैं....!
इतना बोल के शिखा चुप हो गई  !
एक दिन अगले वाले लाईन में एक लड़का अपना बोरा-बस्ता बिछा दिया था, आप आई उसका बस्ता दुसरी तरफ़ फेंक के अपना बोरा बिछा लिया था! क्योंकि आपका कहना था कि यहाँ रोज मैं ही बैठती हूं, और रोज मैं ही बैठुंगी !
प्रार्थना के बाद जब वो लड़का रूम आया तो अपना बस्ता दुसरी ओर देख आपका बस्ता भी वहा से फेक दिया!
फिर आप दोनों में बाल नोचा नोची शुरू हो गया और किसी ने हेडसर को जा के कह दिया  !
ओ.......! हाँ... फिर विद्या सागर सर हमको और उस लड़के को बाहर ले गया और उस लड़के से उठक बैठक करवाया  !
बड़ा बदतमीज बच्चा था  !
और शिखा के चेहरे पे फिर से वही बचपन वाली मुस्कान छा गई  !
और आपको सर कुछ नहीं बोले  !
हाँ सर हमको बहुत मानते थे, अपनी बेटी कि तरह!
सर को पानी भी पीना होता था तो हमही को भेजते थे!
उस लड़के से सिर्फ उठक बैठक ही नहीं करवाया, हाथ पे दो छड़ी भी मारे थे और चेतावनी दी थी कि आगे से किसी लड़की का बाल नोचा तो स्कूल से निकाल दूँगा!
हाँ... सही कहें....!
पर आपको ये सब बातें किसने बताई, और आप मुझे चौथी क्लास से कैसे जानते हैं.....?
मैने शिखा के नजरों से नजरें मिला कर कहा, वो बदतमीज बच्चा मैं ही हूँ....!
शिखा एक टक से मेरी ओर निहारती रह गई!
जैसे यादो के सागर में गोता लगा गया हो कोई!
कुछ बोलने को उसे बन नहीं पा रहा था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि 8-9 साल की उम्र कि बातें, जिसे वो लगभग में भुल चुकी थी, कभी कोई एसे दुहरा जाएगा!

और मेरा मन भी कितना बावला निकला बचपन की छोटी सी बात को अब तक दिल में जिन्दा रखा था, और जब कभी भी उस यादो कि ओर जाता तो मन में एक ही जिज्ञासा होती कि काश कभी उस लड़की से मिल पाता!
क्यों....
किसलिए.... पता नहीं....
उस झगड़े के बाद तो वो मुझे देख के मुंह बनाती थी और मैं उसे देख चिढ़ता था...
फिर उससे मिलने की ये जिद्द कैसा...?
एसा भी तो नहीं था कि उससे प्यार करने लगे थे, क्योंकि उस उम्र में तो Love शब्द  का मिनिंग भी नहीं पता था...
फिर उम्र के साथ साथ उससे मिलने कि ख्वाईश क्यों बढ़ती गई...
तभी हम दोनों कि मौन की गम्भीरता को एक बच्चे ने रो के तोड़ दिया  !
लगता है अभि  जाग गया, मैं उसे ले के आती हूं  !
मैं कुछ बोल तो नहीं पाया बस सिर हिला दिया  !

ये अभिमन्यु है !मेरा चार साल का बेटा!
प्यार से हम इसे अभि  कहते हैं!
मैं बच्चे कि तरफ देख के मुस्कुराया!
फिर शिखा बोली, बेटा देखो कौन आया है, नमस्ते बोलो..
मैं तो आपको सही से जानती भी नहीं, मुझे ये भी पता नहीं कि समाजिक रिश्ते के नाते आप कौन लगेंगे...
एक्चयुली मेरा घर वहा नहीं था मैं अपने नाना जी के घर रह के पढ़ रही थी और आठवी के बाद ख्वाब शहर छोड़ अपने घर आ गई थी  !
सो......
बस यू समझ लो कि मैं भी किसी के पास रह के पढाई कर रहा था, और हमारी कोई परिवारिक बातचीत भी नहीं है  !
इसलिए इस रिश्ते को किसी नाम से ना ही जोड़े तो अच्छा रहेगा...
शिखा कुछ बोलने के लिए सकपकाई, फिर खामोश हो गई  !
मैं भी अपनी नजरे दुसरी ओर फेर लिया  !
लेकिन वो बच्चा टकटकी लगाए मेरी ओर ही देख रहा था !
फिर शिखा बोली, मैं कब से बस बाते किए जा रही हूँ, खाने पीने का पुछी ही नहीं..
मैं खाना खा के आया हूं, बस अब जाने कि इजाजत चाहता हूँ ...
एसे कैसे चल जायेगा, आज रूक जाइये ,कल जाइयेगा
और आप उन से भी नहीं मिले...
जिनसे मिलना था उससे मिल लिया, बड़ी मुश्किल से टाइम निकाल के आया हूं, कल कहीं, किसी और से मुलाकात है...
ये क्या जाने कि बोले और चल भी दिए,!
हाँ शिखा, तुमसे मिलना था, मिल लिया अब यहाँ रूकना यादो कि तौहीन होगी...
एक ग्लास पानी मिलेगा....
हाँ.. क्यों नहीं, अभी लाती हूँ..!
सुनो...
क्या....
बचपन की कोई तस्वीर है.....
हाँ एक दो है, लाती हूँ.....

पता नहीं कुछ देर से मेरे जुबान को क्या हो गया, आप से तुम पे आ गया, लहजे को कुछ गुमान सा हो गया...
लगभग बाईस साल बाद किसी से मिला हूँ, और बाइस घंटे भी उसके पास ना रूकू...

ये लिजए पानी, और ये रही बचपन कि तस्वीर  !
कुछ धुँधला सा हो गया है...

मैने एक घुन्ट पानी पी और तस्वीर को निहारने लगा...
मेरे हाथ जैसे पानी नहीं चाय हो, एक घुन्ट पीता और तस्वीर देखने लगता....
आंखों को यकीन नहीं हो रहा है कि मेरे सामने खड़ी ये चार साल के बच्चे की माँ, यह औरत, वही चौथी क्लास की शिखा है....

मै तस्वीर को देखता, शिखा कि ओर देखता, पानी की घुन्ट लेता और अभी को अल्प क्षणिक मुस्कान से देखता

मैने घड़ी कि ओर देखा, समय नही देखना था, बस इजाज़त कि ओर संकेत करना था...
पानी की ग्लास और तस्वीर मेज पे रख मैने बाय किया..
शिखा कुछ बोल नहीं पायी, बस एक सवाल किया...
इतने साल बाद भी मै आपको याद कैसे रही, और वह क्या कारण है जो मिलने पे मजबूर कर दिया....?
इतने साल बाद भी इसलिए याद हो  क्योंकि मैने उस याद को कभी मिटने नहीं दिया और मिलने का कारण यही रहा कि मैं देखना चाहता था कि बचपन में मुझे देख मुंह चिढ़ाने वाली लड़की अब दिखती कैसी है....

दरवाजे से कुछ आगे निकलने के बाद मैने पलट के देखा तो पाँव भारी सा हो गया....
हंसमुख चेहरे पे इतनी मायूसी, एक टक मेरे  ओर देख रही थी...
मैने बाय कहने के लिए हाथ तो उठाया, किन्तु हिल न सका....
शिखा मेरे ओर एसे देख रही थी कि कह रही हो ओ पागल आ फिर से वही बच्चा बन के मिलते हैं....

जितना दुर निकल रहा था गला उतना ही भारी हो रहा था, मगर हमे जाना ही था....
वही अपना ख्वाब शहर वापस, फिर किसी बचपन के यार से मिलने...
जिसे हमने भुला दिया या वक़्त ने कभी दुबारा मिलाया ही नहीं....
कितने एसे दोस्त थे जिससे लड़ते थे, झगड़ते थे, और दुसरे क्षण साथ खेलते भी थे....
पता नहीं उसे मैं याद हूं या नहीं, मगर वो सब मुझे याद है, क्योंकि वो आठ साल का बच्चा अब भी मेरे अंदर जिन्दा है....
जिन्दा है वो ख्वाब शहर, वो स्कूल, वो दोस्त, वो यादे.....
वो शिखा, जिससे कभी सखा भाव तो नहीं रहा, मगर याद सबसे ज्यादा रही....

सब जिन्दा है..., लेकिन वो बच्चा दफ्न हो गया कहीं, जवानी के आगोस में....!
#अपनी एक काल्पनिक कहानी को छोटा कर के लिखा हूँ, कैसा है बताइयेगा जरूर  !

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