✍️ संजीत कुमार यादव जी
ऎ सुरज अपनी तपन कि जलन को धीमी कर...
आज भुखा आया है काम पे मेरा बच्चा....
तपन वो आज तेरा सह नहीं पाएगा,
मजदूर है वो माषुम कहां कहलाएगा....
कपकपाती जाड़े में भी कुदाल उठा लिया.....
हम मजदुर कि हंसी गुलाब उड़ा लिया......
काम छोड़ हम भी गए थे चुनावी सभा में...
चुनाव जितते ही मंत्री अपना नारा बदल लिया
पत्थर को तरास हमने सड़क बना दिया...
कबाड़ कि ढेर पे महल बना दिया.....
हमही खड़े हैं वहा चुलू भर पानी को..
जिस गटर को हमने ही गंगा बना दिया....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
तपती गर्मी में जलते पाँव चला है...
कंधे पर कुदाल, माथे पे टौकरी...
वह कब किसी के छाँव चला है.....
श्रम पे उसे अपने इमान का गुरुर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
गरजते बादल का भी उसे खौफ़ नहीं....
बरसते मेघा में भी कुदाल चलता रहा...
भरी बारिश में भी लहू उसका जलता रहा.....
पाँव के छाले छिला गए, मगर फिर भी चलता रहा..
परिश्रम पे मिला श्रम का नूर है.....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है..
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है.....
मायुष है वह अपने हालात से...
बात कहां बनती है जज्बात से....
उसके हिस्से का भी हक हमने डिग्रीयो में पा लिया,
इसलिए अक्सर पिछे छुट जाते हैं वो, हिसाब से.....
कुछ पक्की सड़क वहा से भी बना दो, जिन बस्तियों से दिल्ली अभी तक दुर है....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है......✍️ संजीत कुमार यादव जी
ऎ सुरज अपनी तपन कि जलन को धीमी कर...
आज भुखा आया है काम पे मेरा बच्चा....
तपन वो आज तेरा सह नहीं पाएगा,
मजदूर है वो माषुम कहां कहलाएगा....
कपकपाती जाड़े में भी कुदाल उठा लिया.....
हम मजदुर कि हंसी गुलाब उड़ा लिया......
काम छोड़ हम भी गए थे चुनावी सभा में...
चुनाव जितते ही मंत्री अपना नारा बदल लिया
पत्थर को तरास हमने सड़क बना दिया...
कबाड़ कि ढेर पे महल बना दिया.....
हमही खड़े हैं वहा चुलू भर पानी को..
जिस गटर को हमने ही गंगा बना दिया....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
तपती गर्मी में जलते पाँव चला है...
कंधे पर कुदाल, माथे पे टौकरी...
वह कब किसी के छाँव चला है.....
श्रम पे उसे अपने इमान का गुरुर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
गरजते बादल का भी उसे खौफ़ नहीं....
बरसते मेघा में भी कुदाल चलता रहा...
भरी बारिश में भी लहू उसका जलता रहा.....
पाँव के छाले छिला गए, मगर फिर भी चलता रहा..
परिश्रम पे मिला श्रम का नूर है.....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है..
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है.....
मायुष है वह अपने हालात से...
बात कहां बनती है जज्बात से....
उसके हिस्से का भी हक हमने डिग्रीयो में पा लिया,
इसलिए अक्सर पिछे छुट जाते हैं वो, हिसाब से.....
कुछ पक्की सड़क वहा से भी बना दो, जिन बस्तियों से दिल्ली अभी तक दुर है....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है......
ऎ सुरज अपनी तपन कि जलन को धीमी कर...
आज भुखा आया है काम पे मेरा बच्चा....
तपन वो आज तेरा सह नहीं पाएगा,
मजदूर है वो माषुम कहां कहलाएगा....
कपकपाती जाड़े में भी कुदाल उठा लिया.....
हम मजदुर कि हंसी गुलाब उड़ा लिया......
काम छोड़ हम भी गए थे चुनावी सभा में...
चुनाव जितते ही मंत्री अपना नारा बदल लिया
पत्थर को तरास हमने सड़क बना दिया...
कबाड़ कि ढेर पे महल बना दिया.....
हमही खड़े हैं वहा चुलू भर पानी को..
जिस गटर को हमने ही गंगा बना दिया....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
तपती गर्मी में जलते पाँव चला है...
कंधे पर कुदाल, माथे पे टौकरी...
वह कब किसी के छाँव चला है.....
श्रम पे उसे अपने इमान का गुरुर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
गरजते बादल का भी उसे खौफ़ नहीं....
बरसते मेघा में भी कुदाल चलता रहा...
भरी बारिश में भी लहू उसका जलता रहा.....
पाँव के छाले छिला गए, मगर फिर भी चलता रहा..
परिश्रम पे मिला श्रम का नूर है.....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है..
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है.....
मायुष है वह अपने हालात से...
बात कहां बनती है जज्बात से....
उसके हिस्से का भी हक हमने डिग्रीयो में पा लिया,
इसलिए अक्सर पिछे छुट जाते हैं वो, हिसाब से.....
कुछ पक्की सड़क वहा से भी बना दो, जिन बस्तियों से दिल्ली अभी तक दुर है....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है......✍️ संजीत कुमार यादव जी
ऎ सुरज अपनी तपन कि जलन को धीमी कर...
आज भुखा आया है काम पे मेरा बच्चा....
तपन वो आज तेरा सह नहीं पाएगा,
मजदूर है वो माषुम कहां कहलाएगा....
कपकपाती जाड़े में भी कुदाल उठा लिया.....
हम मजदुर कि हंसी गुलाब उड़ा लिया......
काम छोड़ हम भी गए थे चुनावी सभा में...
चुनाव जितते ही मंत्री अपना नारा बदल लिया
पत्थर को तरास हमने सड़क बना दिया...
कबाड़ कि ढेर पे महल बना दिया.....
हमही खड़े हैं वहा चुलू भर पानी को..
जिस गटर को हमने ही गंगा बना दिया....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
तपती गर्मी में जलते पाँव चला है...
कंधे पर कुदाल, माथे पे टौकरी...
वह कब किसी के छाँव चला है.....
श्रम पे उसे अपने इमान का गुरुर है...
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
गरजते बादल का भी उसे खौफ़ नहीं....
बरसते मेघा में भी कुदाल चलता रहा...
भरी बारिश में भी लहू उसका जलता रहा.....
पाँव के छाले छिला गए, मगर फिर भी चलता रहा..
परिश्रम पे मिला श्रम का नूर है.....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है....
घर से अपने दुर है, हालातो से मजबूर है..
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है.....
मायुष है वह अपने हालात से...
बात कहां बनती है जज्बात से....
उसके हिस्से का भी हक हमने डिग्रीयो में पा लिया,
इसलिए अक्सर पिछे छुट जाते हैं वो, हिसाब से.....
कुछ पक्की सड़क वहा से भी बना दो, जिन बस्तियों से दिल्ली अभी तक दुर है....
वह मजदूर है, हाँ वह एक मजदूर है......
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