छोटी सी ज़िन्दगी में गम बहुत है...
सुर्ख आंखें आज नम बहुत है.......
चंद लम्हा ही नहीं गुजरा कि जरूरतो ने दस्तक दे दिया
हम गरीबो के हिस्से खुशिया कम, परिश्रम बहुत है......
वक़्त से पहले ही हम समझदार हो गए.....
ज़िन्दगी जी ही नहीं और उसके कर्जदार हो गए......
हालातो ने ज़िन्दगी से कुछ यूँ रुबरु करा दिया......
कि बचपन बिता नहीं और जवानी के सिल्पकार हो गए...
दो पग के सफर में अपनी काबिलियत खो बैठा....
आई जब याद स्कूल की फिर से रो बैठा......
मैं कहां था किसी से पिछे बैठने वालो में से.....
जरूरतो के दबिश मे बस्ता छोड़ बैठा.....
कुछ कर्ज़ अब भी चुकाना बाँकी है......
कुछ फर्ज अब भी निभाना बांकी हैं....
शायद ज़िन्दगी का दस्तूर यही है......
कुछ सपने छूट गया, कुछ ख्वाब का टूट जाना बाकी है...
सिर्फ मैं ही नहीं जमाने में बोझ उठाए.....
कुछ सफर में है, किसी का भ्रम टूट जाना बाकी है....
हंसते है वो मेरे काम से........
मेरी शख्सियत का तिलिस्म समझना उसे बाँकी है....
धक्के मार के तुम चढ़ा दिए गए हो शिखर पे.....
पत्थरों से गुजरे पथिक के पांव के छाले देखना बाँकी है
किसी को घर से निकलते ही मंजिल मिल गई....
उम्र भर सफर में जो रहा उसके संकल्प को समझना बाँकी है......
जीते हैं बड़े मजे से अपनी जवानी वो.....
अपनो के खाति सपनो को ठुकरा दिया, एसे बेटो का दर्द बाँटना बाँकी है.......
बात इती सी है गर तुम समझ जाओ.....
नासमझो के लिए अभी लिखना बाँकी है.....
👁sanjeet kumar yadav
सुर्ख आंखें आज नम बहुत है.......
चंद लम्हा ही नहीं गुजरा कि जरूरतो ने दस्तक दे दिया
हम गरीबो के हिस्से खुशिया कम, परिश्रम बहुत है......
वक़्त से पहले ही हम समझदार हो गए.....
ज़िन्दगी जी ही नहीं और उसके कर्जदार हो गए......
हालातो ने ज़िन्दगी से कुछ यूँ रुबरु करा दिया......
कि बचपन बिता नहीं और जवानी के सिल्पकार हो गए...
दो पग के सफर में अपनी काबिलियत खो बैठा....
आई जब याद स्कूल की फिर से रो बैठा......
मैं कहां था किसी से पिछे बैठने वालो में से.....
जरूरतो के दबिश मे बस्ता छोड़ बैठा.....
कुछ कर्ज़ अब भी चुकाना बाँकी है......
कुछ फर्ज अब भी निभाना बांकी हैं....
शायद ज़िन्दगी का दस्तूर यही है......
कुछ सपने छूट गया, कुछ ख्वाब का टूट जाना बाकी है...
सिर्फ मैं ही नहीं जमाने में बोझ उठाए.....
कुछ सफर में है, किसी का भ्रम टूट जाना बाकी है....
हंसते है वो मेरे काम से........
मेरी शख्सियत का तिलिस्म समझना उसे बाँकी है....
धक्के मार के तुम चढ़ा दिए गए हो शिखर पे.....
पत्थरों से गुजरे पथिक के पांव के छाले देखना बाँकी है
किसी को घर से निकलते ही मंजिल मिल गई....
उम्र भर सफर में जो रहा उसके संकल्प को समझना बाँकी है......
जीते हैं बड़े मजे से अपनी जवानी वो.....
अपनो के खाति सपनो को ठुकरा दिया, एसे बेटो का दर्द बाँटना बाँकी है.......
बात इती सी है गर तुम समझ जाओ.....
नासमझो के लिए अभी लिखना बाँकी है.....
👁sanjeet kumar yadav
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