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कहानी अधूरी सी

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18 May 2018

नंगे पाँव फटे वस्त्र, बदहाली का उपहास है...
मुंह में दाँत ना, कमर पे टोकरी,
पेशा मजदुरी उनका अभिशाप है...
फिर भी सर पे पगड़ी, बदन पे कुर्ता, जुबानी बाबू जान है
हाँ वो मेरा बिहार-ऎ-हिन्दुस्तान हैं...

अथक परिश्रम, अद्वितीय कार्य,
जिनके पसीने को दुनिया का सलाम है...
हाँ वो मेरा बिहार-ऎ-हिन्दुस्तान हैं....

दू जुन कि जुगत में, खुशियाँ कुर्बा तमाम है...
माई बाबू के जहा घरे में अभी तक गुमान है...
चार टके पा के भी त्योहारी के बबुआ के  जहा शान है
पहाड़ का भी सीना चीर दे, धरती का जहा सुर्यभान है
हाँ वो मेरा बिहार-ऎ-हिन्दुस्तान हैं....

पसीने से पोछता, तकदीर का जहा निशान है....
हाँ वो मेरा बिहार-ऎ-हिन्दुस्तान हैं...

श्रम से ना डरे, परिश्रम का लिबास है...
जाड़े गर्मी, धुप बरसात,
पहर गुजर जाए जहा वही आवास है ....
महल वालों कि गुस्ताखी में, मेहनतकशी अंजाम है...
रक्त से सिंच के अन्न दिया जन को,
हर निवाले में छिपा बिहारी का घाम है...
भाईचारा और सद्भावना, ज्वलंत संस्कृति का विधान है
होली, ईद, दिवाली मोहर्रम में झुमते जहां राम हैं...
हाँ वो मेरा बिहार-ऎ-हिन्दुस्तान हैं....

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