लोकतंत्र का गला घोटते आज लोकतंत्र के रखवाले हैं।
अपनी-अपनी दूकान चलाते ये भाड़े के मिडिया वाले हैं।
सच्चाई की बातों पर इनके मुँह पर लगते ताले हैं।
मिर्च-मसाला डाल ख़बर मे,
ये परोसते विष के प्याले हैं।
ज़हर बो लोगों के मन में,
ये दंगे करवाते हैं।
फिर शूट-बूट और टाई लगाकर
हाय-हाय चिल्लाते हैं।
अपनी-अपनी बढ़त बताते,
कहते सबसे श्रेष्ठ हैं,
झूठ बोल ताली पिटवाते,
फिर भी कहते बेस्ट हैं।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को..
जैसे दीमक चाट गई है,
आम आदमी की गरीबी अब शायद,
अमीरी की चादर झाँप गई है।
अब मरते किसान ख़बर ना बनते,
नेताओं के बोल बचन पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलवाते हैं।
लोकतंत्र अब भरष्टतंत्र है,
साबित अब खुद करवाते हैं।
हे प्यारे भाई-बंधू..
अब अपनी अकल लगाओ..
इनके पचड़े में पड़कर अब..
ना अपना खून बहाओ।
ये कुलषित हैं,कुण्ठित हैं।
अपनी काली स्याही से,
बर्बाद-ए-हिन्दुस्तान लिखेंगे।
लड़वाएंगे-कटवाएंगे..
फिर भी दूकान चलाएंगे।
अपनी-अपनी दूकान चलाते ये भाड़े के मिडिया वाले हैं।
सच्चाई की बातों पर इनके मुँह पर लगते ताले हैं।
मिर्च-मसाला डाल ख़बर मे,
ये परोसते विष के प्याले हैं।
ज़हर बो लोगों के मन में,
ये दंगे करवाते हैं।
फिर शूट-बूट और टाई लगाकर
हाय-हाय चिल्लाते हैं।
अपनी-अपनी बढ़त बताते,
कहते सबसे श्रेष्ठ हैं,
झूठ बोल ताली पिटवाते,
फिर भी कहते बेस्ट हैं।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को..
जैसे दीमक चाट गई है,
आम आदमी की गरीबी अब शायद,
अमीरी की चादर झाँप गई है।
अब मरते किसान ख़बर ना बनते,
नेताओं के बोल बचन पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलवाते हैं।
लोकतंत्र अब भरष्टतंत्र है,
साबित अब खुद करवाते हैं।
हे प्यारे भाई-बंधू..
अब अपनी अकल लगाओ..
इनके पचड़े में पड़कर अब..
ना अपना खून बहाओ।
ये कुलषित हैं,कुण्ठित हैं।
अपनी काली स्याही से,
बर्बाद-ए-हिन्दुस्तान लिखेंगे।
लड़वाएंगे-कटवाएंगे..
फिर भी दूकान चलाएंगे।
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